Monday, 16 December 2013

Navkar Mantra (Hindi)

जैन दर्शन में अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधु ये पांच विशिष्ट पद माने गए हैं. सिद्ध संसार-दशा, जन्म, मृत्यु, रोग, शोक, दुःख, राग, द्वेष आदि से सर्वथा मुक्त हैं. वे अशरीरी- परमात्मा है. अरिहंत भी परमात्मा दशापन्न ही है पर अभी शरीर के बंधन से मुक्त नहीं हैं. आयुष्य समाप्ति पर उनका सिद्धत्व सुनिश्चित हैं. आचार्य उपाध्याय और साधु ये तीनो साधक हैं. इनका लक्ष्य भी सिद्धि प्राप्ति है पर ये अभी उस दिशा में प्रयत्नशील हैं.

जैन धर्म के महामंत्र जिसे ’ नमस्कार सूत्र ’ कहा जाता है में इन सभी पांच पदों ( अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधुओं) को नमस्कार किया गया है. यह मंत्र प्राकृत भाषा में है:

नमस्कार सूत्र, नमोकार मंत्र, नवकार मंत्र, जैन महामंत्र, पंच परमेष्टि सूत्र 

णमो अरिहंताणं
णमो सिद्धाणं
णमो आयरियाणं
णमो उवज्झायाणं
णमो लोए सव्व साहूणं
एसोपंचणमोक्कारो, सव्वपावप्पणासणो
मंगला णं च सव्वेसिं, पडमम हवई मंगलं


श्री अरिहंत भगवान्, श्री सिद्ध भगवान्, श्री आचार्य महाराज, श्री उपाध्याय महाराज और लोक में वर्तमान सभी साधु मुनिराज इन पांच परमेष्ठियों ( जो मोक्ष और संयम में स्थित हैं) को मेरा नमस्कार हो. उक्त पांच पदों को किया गया नमस्कार सभी पापों का नाश करने वाला है और सभी प्रकार के लोकिक मंगलों में प्रथम (प्रधान) मंगल है.


नोट : 
सिद्ध भगवान् मोक्ष में स्थित हैं और शेष चार पद ( अरिहंत, आचार्य, उपाध्याय और साधु ) संयम में स्थित हैं.
सिद्ध भगवान् निराकार है वे हमें दिखाई नहीं देते हैं. अरिहंत ही हमारी उनसे पहचान करवाते हैं. इसलिए अरिहंतो को सिद्धों से पहले नमस्कार किया गया है .
अरिहंत और सिद्ध ये तो देव पद है और शेष तीन गुरु पद हैं.

भगवान् महावीर


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